जल – अमृत या विष ?
जल – अमृत या विष ?
Hello friends,
आज के समय में बढती medical facilities, excellent emergency services and advance technology के चलते हम लोगों का average life span बढ़ रहा है, ऐसा आंकड़े दर्शाते हैं| But unfortunately इस सकारात्मक पहलू के साथ एक दुर्भाग्यपूर्ण सच को भी हम, नहीं नकार सकते कि हमारे स्वास्थ्य का स्तर यानि कि हमारी quality of health निश्चित रूप से लगातार गिरती चली जा रही है| हम दिन प्रतिदिन कमजोर होते जा रहे हैं, बीमार होते जा रहे हैं| हालत यह है कि शायद आज हम में से कोई भी व्यक्ति अपने को पूर्ण रूप से स्वस्थ कह पाने की स्थिति में नहीं है| कोई Pharmaceuticals यानि कि दवाओं की मदद से तो कोई Neutraceticals यानि कि so-called health tonics की मदद से some-how अपनी जिंदगी को खींच रहा है|
इस दयनीय अवस्था के लिए मोटे तौर पर यदि कोई जिम्मेदार है, तो वह है हमारा गलत खान पान एवं हमारी गलत जीवन-शैली|
खान पान की यदि बात करें, तो पांच तरह की mistakes या अनिमितताएं हमें देखने को मिलती हैं – जैसे कि हमारे खाने की quality ठीक नहीं है, खाना कितनी मात्रा में खाया जाए, किस combination में खाया जाए, किस समय खाया जाए एवं किस विधि से खाया जाए, इन सब अति महत्वपूर्ण बातों का भी हमें सम्यक ज्ञान नहीं है|
सच तो यह है कि आहार सम्बन्धी पूरी सही जानकारी लेने का जब भी हम प्रयास करते हैं तो difference of opinion इतना ज्यादा है कि confusion के अलावा हमें कुछ नहीं मिलता| अन्य खाद्य पदार्थों की तो छोड़े – आहार के सबसे महत्वपूर्ण एवं प्रतिदिन अनेको बार सेवन किये जाने वाले जल के बारे में भी हमें सही जानकारी नहीं है| कोई एक दिन में २ लीटर पानी पीने को बोलता है तो कोई ४ लीटर, तो कोई अधिक से अधिक पानी पीने की बात करता है|
हद तो तब हो जाती है जब कोई बिना प्यास लगे भी खूब पानी पीने के लिए कहता है, दबा कर पानी पीने के लिए कहता है| कहा जाता है, कि यदि पेट की बिमारियों जैसे कब्ज़, एसिडिटी एवं गैस आदि को ठीक करना है तो खूब पानी पियो, शरीर को detox करना है तो खूब पानी पियो, पेशाब में जलन होती हो तो खूब पानी पियो, किडनी में stones बनते हो तो खूब पानी पियो, मोटापा कम करना है तो खूब पानी पियो.
लेकिन खूब पानी पीना इन स्थितियों में कैसे फायदा पहुंचाता है इसका logical expalanation जानने की जब कोशिश की जाती है तो वो explanations सामने आते हैं जो समझ से परे होते हैं|
For example पेट के सभी रोग जैसे constipation, acidity, gas and even Irritable Bowel Syndrome जिसमे कि रोगी को बार बार मल त्याग के लिए जाना पड़ता है लेकिन तसल्ली फिर भी नहीं मिलती, आदि सभी रोग हमारी पाचक अग्नि की मंदता यानि कि हमारे sluggish digestive power के कारण उत्पन्न होते हैं| Modern science भी इसके लिए digestive enzymes का कम होना या dilute होना मानता है|
अतः इन रोगों में पाचक अग्नि यानि कि digestive enzymes को बढ़ा कर ही इन रोगों से पूर्ण मुक्ति पायी जा सकती है| ऐसे में अग्नि के प्रबल विरोधी जल का अत्याधिक मात्रा में प्रयोग, कैसे आपके अग्नि बल को बढ़ाएगा और कैसे इन बीमारियों में आपको लाभ पहुंचाएगा, समझ से परे है| कहीं ऐसा तो नहीं कि इन रोगों में क्षणिक लाभ के लिए लिया गया अत्याधिक पानी ही, पेट के इन सामान्य रोगों को कभी ना ठीक होने वाले असाध्य रोग बना देता हो| कृपया विचार करें|
- साथियों आज, Body detoxification के नाम पर भी हम खूब जल पी रहे हैं| Ignoring the fact that शरीर के regular metabolism के कारण उत्पन्न अथवा अन्य कारणों से रक्त में पहुंचे nitrogenous waste products जैसे Urea इत्यादि को हमारी kidney, urine के माध्यम से शरीर से बाहर पहुंचाती है और यह क्रिया शरीर का एक natural, Auto-regulated mechanism है, जहाँ अधिक जल का पीना वैज्ञानिक दृष्टि से भी कोई मदद नहीं पहुंचाता|
- बल्कि होता यह है कि आपके द्वारा पीये गए खूब जल को किडनी शुरू में अधिक मात्रा में पेशाब बना कर लेकिन बाद में urine formation के standard mechanism को disturb करते हुए diluted urine के रूप में ही शरीर से बाहर निकालना शुरू कर देती है| किडनी के द्वारा निकलने वाले इस पतले पेशाब के साथ हमारे ions and other important solutes भी abnormally शरीर से बाहर निकलना शुरू हो जाते हैं| इस प्रक्रिया के लगातार चलने पर body में Fluid and Electrolyte imbalance की स्थिति पैदा हो जाती है| यही वो स्थिति है जब किसी भी व्यक्ति का blood pressure बढ़ना शुरू हो जाता है| साथियों आपको हैरानी होगी, कि आज कल अज्ञात कारणों से बढ़ने वाले blood pressure, यानि की idiopathic hypertension के होने में हमारे द्वारा पिया गया अधिक पानी भी एक बड़ा कारण होता है|
- बात केवल blood pressure तक ही नहीं रूकती| पेशाब के लगातार अधिक मात्रा में बनने, छनने आदि क्रियाओं हेतु किये गए अतिरिक्त परिश्रम से हमारी किडनी exhaust होने लगती है, किडनी के nephrones डैमेज होना शुरू हो जाते हैं| जितने nephrones डैमेज होते हैं, उतना ही kidney function compromised होता चला जाता है| एक अवस्था ऐसी आती है की हमारी किडनी normal urine formation भी नहीं कर पाती और हमारे blood में urea एवं creatinine बढने लगते हैं| यह स्थिति किडनी के लगभग 50% damage होने के बाद आती है| इस समय किसी भी व्यक्ति को पेशाब सम्बन्धी कुछ न कुछ problems शुरू हो जाती है| वह डॉक्टर के पास पहुँचता है – लक्षणों एवं blood test आदि के माध्यम से, उस व्यक्ति की किडनी ठीक नहीं है, ऐसा बतलाया जाता है एवं उसका पानी पीना बंद करा दिया जाता है|
साथियों बड़ा अजीब सा और ना समझ में आने वाला प्रचलन है कि आज कल उपलब्ध खाद्य पदार्थों के द्वारा हमारे शरीर में chemical, fetilizer, urea इत्यादि पहुँच रहे होंगें ऐसा assume करके उनकी hypothetical presence को clear करने के लिए तो हम खूब पानी पीते हैं – लेकिन जब urea इत्यादि की documented actual presence blood में नज़र आती है तो हमें पानी पीना बंद करा दिया जाता है|
- अतः स्पष्ट है कि detoxification के नाम पर लिया गया जल हमें detox तो नहीं करता लेकिन अनेक बीमारियों का कारण जरूर बन जाता है| आज कल kidney patients की बढती हुयी संख्या के पीछे भी हमारे द्वारा अत्याधिक मात्रा में लिया जाने वाला जल ही है|
- साथियों, कम से कम मैं तो जल को detoxification का नहीं बल्कि somehow toxification का माध्यम मानता हूँ| और यहाँ कुछ व्यवहारिक उदाहरण भी प्रस्तुत करना चाहूँगा, जैसे कि, हमारे kitchen में रखे खाद्य पदार्थ तभी तक सुरक्षित हैं जब तक उनमे नमी का संपर्क नहीं होता| घर के बाहर पड़ा कूड़ा भी जल के संपर्क में आने के बाद ही सड़ना शुरू होता है एवं वर्षा ऋतू में ही हमें, सर्वाधिक विषैले कीड़े मकोड़े एवं जीव-जंतु आदि देखने को मिलते हैं| ऐसे में तो जल detoxification का नहीं बल्कि toxification का माध्यम प्रतीत होता है| कृपया विचार करें.
दोस्तों, पेशाब में जलन की अवस्था को लेकर भी हम बहुत बड़े भ्रम में जी रहे हैं कि अधिक पानी पीने से पेशाब की जलन चली जाती है या नहीं होती है|
यहाँ बताना चाहूँगा की किसी भी व्यक्ति को पेशाब में जलन प्रायः दो कारणों से होती है – Infection यानि कि पेशाब में किसी संक्रमण के कारण या Obstruction यानि पेशाब के रास्ते में किसी रुकावट के कारण|
यहाँ मैं पूरे confidence से आपको यह clear करना चाहता हूँ कि एक confirmed UTI को पानी से ठीक नहीं किया जा सकता हैं| उसे ठीक करने के लिए निश्चित ही आपको दवाओ की आवश्यकता पड़ेगी| इस स्थिति में सेवन किया गया अत्याधिक जल आपके urine को थोडा diluted करके या affected part के superficial debris को हटाके आपको पेशाब की जलन से थोड़ी राहत तो दे सकता है, लेकिन सही इलाज ना लेकर यदि केवल अधिक पानी के माध्यम से इस स्थिति को नियंत्रण में रखने की लगातार कोशिश की जाती है, तो यह प्रयास persistent infection and renal exertion के कारण हमारी किडनी को खराब करके पहले blood pressure, और बाद में किडनी के अन्य घातक बीमारियों में कारण बन जाता है|
और यदि पेशाब में जलन, रास्ते में रुकावट या नसों की कमजोरी के कारण है तो उन स्थितियों में जल का अधिक मात्रा में सेवन आपको नुकसान नहीं – बहुत नुकसान पहुंचाएगा|
इस point पर एक बहुत ही महत्वपूर्ण research के बारे में आपको बत्ताना चाहूँगा – हमारे जिन रोगियों को recurrent या persistent UTI की समस्या थी, उन्हें चिकित्सा के दौरान कम एवं उबला हुआ पानी पिलाया गया, और साथ ही शौच आदि के लिए भी उबाल कर ठन्डे किये गए पानी के प्रयोग को निर्देशित किया गया| कुछ ही दिनों में बहुत आश्चर्य चकित कर देने वाले परिणाम सामने आये| इस रिसर्च के बाद हम यह निष्कर्ष निकाल पाए की अत्याधिक मात्रा में पिया गया कच्चा जल एवं शौच आदि के लिए प्रयोग किया जाने वाला अदृश्य-जीवाणु युक्त जल भी लगातार रहने वाले संक्रमण में कारण हो सकता है|
व्यवहार में आज कल हम लोग जल-शुद्धि के लिए RO एवं अन्य water purifier अपने घरों में लगवाते हैं लेकिन maintenance में थोड़ी भी लापरवाही हो यानी कि पानी शुद्धि पूर्ण रूप से न हो पाए, तो bacteria and viruses आदि microbes के उस जल के माध्यम से शरीर में प्रवेश की प्रबल संभावना बन जाती है| ठीक तरह से पैक न किये हुए एवं अधिक पुराने bottled water में भी यही स्थिति संभावित है| क्योंकि जल ही एक ऐसा पेय आहार है जो न तो बाहर पकाया जाता है और ना ही शरीर के भीतर जठराग्नि द्वारा| जबकि सभी अन्य आहार-द्रव्य बाहर भी पकाए जाते हैं और शरीर में भी जठराग्नि द्वारा सम्यक पाक होने बाद ही अवशोषित होते हैं| शायद इन्ही सब संभावनाओं को समाप्त करने के लिए शास्त्रों ने हमेशा पक्व-जल पीने का प्रावधान किया है, रोगियों में तो ख़ास तौर पर| कृपया विचार करें.
किडनी stones के cases में भी अधिक पानी पीकर stone निकालने का प्रयास या पथरी ना बने इसके लिए पिया गया अत्याधिक जल भी शास्त्रोक्त नहीं है, इसके लिए भी शास्त्र में औषधि सिद्ध दूध में थोडा घी मिला कर पीने का विधान बतलाया गया है|
साथियों – स्पष्ट है कि विषय बहुत गंभीर है और उलझा हुआ है| कि आखिर कितनी मात्रा में, कब और कैसे पानी पीया जाए जिससे कि हम इस अमृत रुपी ईश्वरीय प्रसाद से शरीर का पोषण करें, विनाश नहीं.
ऐसे में मुझे एक पुराने गीत की कुछ पंक्तिया याद आती हैं – कि जो तुझसे नहीं सुलझे तेरे उलझे हुए धंदे, उन्हें भगवान् की मर्ज़ी पे तु छोड़ दे ऐ बन्दे, वो ही तेरी मुश्किल आसान करेगा, जो तु न कर सका वो भगवान् करेगा|
तो इस समस्या के समाधान के लिए मैं आपको सीधे प्रभु के चरणों में ले चलता हूँ – मेरा मतलब है कि स्वयं प्रभु द्वारा रचित हमारे पूर्ण वैज्ञानिक, शास्वत, एवं अकाट्य वेद जैसे ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद तथा आयुर्वेद के मौलिक ग्रन्थ जैसे चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, वाग्भट संहिता इत्यादि में खान पान को लेकर जो दिशा निर्देश दिए गए हैं उनको मैं आपके सामने रखता हूँ|
खान पान सम्बन्धी शास्त्रोक्त इस लम्बी श्रंखला में सबसे पहले हम चर्चा करते हैं आहार के सबसे मत्वपूर्ण एवं नित्य सेवन किये जाने वाले जल की|
शास्त्र लिखता है –
केवलं सौषधं पक्वमाममुष्णं हितं च तत् |
समीक्ष्य मात्रया युक्तममृतं विषमन्यथा ||
जल को अकेले लिया जाए या औषधियों से सिद्ध करके लिया जाये, उबाल कर लिया जाये अथवा शीतल लिया जाये, या सिर्फ गरम करके लिया जाये, शरीर की अवस्था के अनुसार ऐसा विचार करके, सही मात्रा में, सही समय पर एवं सही विधि से लिया गया यह जल अमृत के समान गुणकारी होता है अन्यथा शरीर में विषाक्तता को उत्पन्न करता है|
किसी भी खाद्य पदार्थ की तरह जल की भी तीन मात्राएँ विचारणीय होती हैं – अति मात्रा, सम मात्रा एवं अल्प मात्रा – यानि कि excess quantity, adequate quantity and less quantity.
जल की अति मात्रा
जल की अति मात्रा के बारे में मैं आपको बताना चाहूँगा कि कहीं भी वेदों में, अथवा आयुर्वेद के मौलिक ग्रंथों में, किसी भी अवस्था में स्वस्थ व्यक्ति या रोगी के लिए अधिक मात्रा में जल लेने का विधान नहीं हैं, except for the condition of acute fluid loss.
आचार्य वाग्भट के अनुसार –
अतियोगेन सलिलं तृष्यतोऽपि प्रयोजितम् |
प्रयाति पित्ताश्लेष्मत्वं ज्वरितस्य विशेषतः ||
यानि कि प्यास लगने पर भी अधिक मात्रा में यदि जल पीने की प्रवृति यदि किसी व्यक्ति की होती है तो उसके रोगोत्पादक दोष प्रकुपित होकर उसके शरीर में अनेको रोगों को उत्पन्न कर देते हैं, ज्वर के रोगी में तो ख़ास तौर पर|
आचार्य चरक के अनुसार -
वह व्यक्ति जो आहार द्रव्यों को तृप्ति पूर्वक खाकर पुनः जलीय पदार्थों को भी अत्याधिक मात्रा में पीता है, उस व्यक्ति के आमाशय में स्थित वात, पित्त एवं कफ दोष अत्याधिक कुपित होकर उस व्यक्ति में अनेको रोगों को उत्पन्न करते हैं|
आचार्य सुश्रुत के अनुसार भी
अत्यम्बुपानाद्विषमाशनाद्वा सन्धारणात् स्वप्नविपर्ययाच्च|
कालेऽपि सात्म्यं लघु चापि भुक्तमन्नं न पाकं भजते नरस्य ||
अर्थात, अधिक जल पीने से, सही समय पर, अल्प मात्रा में खाया गया भोजन भी ठीक से नहीं पचता यानि अपच या अजीर्ण की स्थिति पैदा हो जाती है|
अधिक मात्रा में पिया गया यह जल हमारे शरीर में विद्यमान १३ प्रकार की अग्नियों जैसे, १ जठराग्नि (यानि कि fire at the level of digestive system), ७ धातु अग्नि (यानि कि fire at the level of various structural unit of the body ) एवं ५ भुताग्नियों (यानि कि fire at cellular level) को मन्द कर देता है|
आचार्य वाग्भट लिखते हैं –
रोगा सर्वेऽपि मंदेऽग्नौ सुतरामुदाराणि च|
अर्थात इस मन्द हुयी अग्नि को ही आयुर्वेद में प्रायः सभी रोगों का मूल कारण बतलाया गया है|
आचार्य चरक भी इसी अग्नि के महत्व को बताते हुए लिखते हैं-
आयुर्वर्णबलं स्वास्थयमुत्साहोपचयौ प्रभा |
ओजस्तेजोऽग्नयः प्राणाश्रोक्ता देहाग्निहेतुका ||
अर्थात – किसी भी व्यक्ति की आयु, उसका वर्ण, उसका स्वास्थ्य, उसका उत्साह, उसकी growth, उसकी बुद्धि, उसका ओज यानि कि उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता यहाँ तक की उसके प्राणों का भी यदि कोई आधार है, तो वह है उस व्यक्ति की अग्नि|
अग्नि की महत्ता को बताते चरक पुनः लिखते हैं –
शान्तेऽग्नौ म्रियते, युक्ते चिरं जीवत्यनामयः|
रोगी स्याद्विकृते, मूलमग्निस्तस्मान्नि रुच्यते ||
अर्थात यह अग्नि ही है जिसके शांत होने से व्यक्ति मर जाता है और जब तक यह शरीर में रहती हैं तब तक व्यक्ति जीवित रहता है और इसीके विकृत यानि कि imbalance हो जाने पर व्यक्ति बीमार हो जाता है| इसीलिए अग्नि को किसी भी व्यक्ति के शरीर का मूल कहा गया है|
वह कोई भी व्यक्ति जो स्वस्थ रहते हुए दीर्घ आयु की कामना करता है उसे सदैव अपनी इस अग्नि की रक्षा के लिए तत्पर रहना चाहिए|
और जब बात अग्नि की रक्षा की आती है तो सबसे पहला विचार अग्नि के सबसे बड़े विरोधी जल की तरफ जाता है| शायद इसी कारण से शास्त्रों में कहीं पर भी अधिक जल के सेवन को नहीं बतलाया गया है|
यदि हम modern science के नज़रिए से भी देखें तो अधिक मात्रा में पिये गए जल से blood का volume बढ़ जाता है- जिससे heart पर दवाब पड़ता है साथ ही blood vessels पर भी blood का दवाब यानि blood pressure बढ़ जाता है| अधिक मात्रा में पिये गए जल से शरीर में water retention की अवस्था उत्पन्न हो सकती है जिससे पैरों में और शरीर अन्य अंगों में सुजन आ जाती है| शरीर हमेशा भारी भारी लगता है|
इन अवस्थाओ में अक्सर diuretic यानि कि पेशाब लाने वाली दवाइयों के माध्यम से जल की अधिकता को कम करके आपको आराम पहुँचाने की कोशिश की जाती है|
इसके अतिरिक्त ज्यादा पानी पीने से nausea, vomitting, पेट में भाड़ीपन, थकान महसूस होना, आलस्य बना रहना, सिर दर्द होना इत्यादि की स्थितियां भी पैदा हो सकती हैं|
इस समय एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात आपको बताना चाहूँगा की यदि दुर्भाग्य से हमारी किडनी हमारे द्वारा पिए गए अत्याधिक पानी को किसी भी तरीके से शरीर से बाहर निकालने में असक्षम हो जाये तो शरीर में रुका हुआ पानी पहले extra cellular space में और उसके बाद cells यानि कि कोशिकाओं के अन्दर जाना शुरू हो जाता है| Cells के अन्दर पहुंचा हुआ यह अवांछनीय यानि unwanted जल cellular fluid को dilute करके cells के function को alter कर देता है|
प्रबल संभावना है कि cellular level पर हुआ यही functional imbalance बहुत से ऐसे रोगों का आधार हो, जिनके उत्पत्ति का कारण आज तक स्पष्ट नहीं हैं|
यहाँ एक आश्चर्यजनक तथ्य आपको बताना चाहूँगा कि मधुमेह यानी diabetes की उत्पत्ति में भी सभी आचार्यों ने जलीय प्रधान अन्न पान को विशेष कारण माना है. शास्त्र लिखता है कि वह कोई भी अभ्यास जो मूत्र प्रवृति को बढाए, diabetes में कारण हो सकता है और हम सभी जानते हैं कि अधिक पीया गया पानी मूत्र की अत्याधिक प्रवृति में कारण होता है. यहाँ यह बात भी विचारनीय है कि diabetic patients में लक्षण के रूप में अधिक पेशाब का आना कहीं शरीर का अपने over-hydration से मुक्ति का प्रयास तो नहीं.
आपको यह जान कर भी आश्चर्य होगा की brain cells में कुछ इसी तरह का alteration Headache, Confusion, चक्कर आना, दौरे पड़ना, कोमा और यहाँ तक कि मृत्यु का भी कारण हो सकता है|
संभवतः Over-hydration हमारे शरीर के electro-magentic field को भी toxically यानी मारक तरीके से प्रभावित करता होगा जैसा कि हम जल और विद्युत् के संपर्क के मारक दुष्प्रभाव को प्रकृति में देखते हैं .
निश्चित ही हमारे आचार्यों का अध्ययन इतना गहन रहा होगा कि उन्होंने जल की अधिक मात्रा को विष तक की संज्ञा देते हुये कहीं पर भी अधिक जल पीने का निर्देश नहीं दिया.
यहाँ पर एक बहुत ही अच्छे और व्यवहारिक उदाहरण की भी हम चर्चा कर सकते है – खेतों के बीच से जाती हुई नदी का पानी जबतक अपने किनारों से बंधा रहता है तब तक आस पास के खेत सोना उगलते हैं, लेकिन यदि यह पानी अपनी हदें तोड़ कर फैल जाता है तो उन्ही खेतो की फसल के विनाश का कारण बन जाता है|
So friends – balance is the key for everything, and so for water – never drink excess of water – अधिक पानी कभी ना पियें.
पानी की सम मात्रा
एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए जल की मात्रा को निश्चित नहीं किया जा सकता है| यह मात्रा उस व्यक्ति द्वारा उस दिन किये गए शारीरिक परिश्रम, बाहर के वातावरण, और शरीर की अवस्था के अनुसार प्रतिदिन परिवर्तित होती रहती हैं|
मोटे तौर पर किसी भी व्यक्ति को एक दिन में १.५ से २ लीटर तक जलीय पदार्थो का सेवन करना चाहिए| जलीय पदार्थो से हमारा तात्पर्य है – जल, दूध, जूस, चाय, काफी, सूप इत्यादि का सम्मिलित योग|
More precisely, वह कोई भी व्यक्ति जो 24 घंटे में minimum 500 ml urine pass करता है, उसके शरीर में जलीय अंश की सही मात्रा में पहुँच रही है, ऐसा मान सकते हैं|
शास्त्रों के विस्तार पूर्वक अध्ययन के आधार पर आज के समय में किसी भी स्वस्थ व्यक्ति के लिए जल ग्रहण की सही मात्रा, सही समय एवं सही विधि इस प्रकार से होगी-
- आँतों की शुद्धि हेतु – प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति को प्रातः खाली पेट लगभग 250 ml यानि की एक गिलास गरम पानी धीरे धीरे पीना चाहिए|
- भोजन को पचाने में मदद हेतु –
- भोजन के साथ बार बार थोडा-थोडा करके लगभग एक कप यानी कि 100-150 ml जल का सेवन करना चाहिए|
- भोजन के बाद – लगभग हर घंटे पर प्यास ना लगने पर भी एक से दो घूँट पानी पीना चाहिए| लिए गए पानी को १५-२० सेकंड तक मूंह में रख कर, हिला कर, फिर निगलें| इस तरह से पिया गया पानी हमारे पाचक अग्नि को मन्द किये बिना, पचते हुए भोजन को गीला रखने में मदद करता है| रात्रि में यह कार्य, आमाशय में स्थित क्लेदक कफ के द्वारा होता है| दिन में वायु के प्रभाव से क्लेदक कफ पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता है|
शास्त्रों के अनुसार –
भक्त्स्यादौ जलं पीतमग्निसादं क्रिशान्गताम् ||
अन्ते करोति स्थूलत्व्मूर्ध्वं चामाशयात कफम् |
मध्ये मध्यांग्तां साम्यं धातूनां जरणं सुखम् ||
अर्थात भोजन के प्रारंभ में लिया गया जल अग्नि को मन्द कर के व्यक्ति को लगातार दुर्बल बना देता है| भोजन के अंत में लिया गया जल शरीर को मोटा बना देता है जबकि भोजन के मध्य मे लिया गया जल शरीर को सम-प्रमाण रखता है एवं पाचन में भी मदद करता है|
शास्त्र पुनः लिखता है
मुहुर्मुहुर्वारि पिवेद्भुरि|
यानि कि बार बार थोडा-थोडा पानी पिए|
साथियों एक महत्वपूर्ण बात आपको बताना चाहूँगा की अन्न कभी भी गीला हुए बिना नहीं पकता या गलता है – जैसे कि यदि आपको चावल पकाना है तो चावल में पहले पानी मिलाते हैं फिर अग्नि देते है, ऐसा ही हम दाल, सब्जियों एवं अन्य भोज्य पदार्थो के लिए भी करते हैं. लेकिन ध्यान रहे की रसोई की भाँति बर्तन की यह सुविधा हमारे पेट में नहीं होती| खाया गया आहार सीधे हमारी पाचक अग्नि यानी digestive enzymes के संपर्क में रहता है, अतः हमें जल इस विधि से पीना है कि यह जल हमारे अन्न को तो गीला करे लेकिन अग्नि को मन्द किये बिना|
इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति अधिक मात्रा में जल का सेवन करता है तो उसका अन्न गीला तो होता है लेकिन अग्नि भी मन्द हो जाती है, और अपच की स्थिति पैदा हो जाती है| अधिक मात्रा में लिया गया जल being good medium of transportation एवं अपने भार से खाए गए अन्न को भी irrespective of digestive stage, समय से पहले आगे बढ़ा देता है. जिससे पूर्व के स्थान की पाक क्रिया अधूरी रह जाती है – यानी अन्न कच्चा रह जाता है और अजीर्ण की स्थिति पैदा हो जाती है.
इसके अतिरिक्त वह व्यक्ति, जो बिल्कुल जल नहीं पीता है उसका अन्न सूख कर विदग्ध हो जाता है यानि कि जल जाता है| ऐसे व्यक्ति को पेट में असहनीय तीव्र जलन होती है जिसकी शांति हेतु वह व्यक्ति ठंडा जल या दूध को अत्याधिक मात्रा में लेकर उस जलन को तो शांत करता है लेकिन अपनी अग्नि को भी मन्द कर लेता है, और अपच के इस जाल में फसता चला जाता है|
- प्यास लगने पर किसी भी व्यक्ति को एक से दो घूँट पानी संयम के साथ पीना चाहिए.
जल की अल्प मात्रा
कुछ ऐसे रोग भी हैं जिनमे जल पीने का निषेध किया गया है परन्तु सहन नहीं होने पर अति अल्प मात्रा में जल पीने का विधान बतलाया गया है|
पाण्डूदरपीनस मेहगुल्ममन्दानलातिसारेषु |
प्लीहनि च तोय न हित काममसह्ये पिबेदल्पम् ||
अर्थात एनीमिया, पेट के रोग जैसे कब्ज़, एसिडिटी, गैस, IBS इत्यादि, नजला, मधुमेह, गांठे, अग्नि की मंदता, आमातिसार, तिल्ली के रोग एवं शोथ, शोष इत्यादि में जल का निषेध है, किन्तु शास्त्र कहता है की असहनीय होने पर अल्प मात्रा में जल लिया जा सकता है|
शास्त्र पुनः लिखता है-
अनवस्थितदोषाग्नेर्व्याधिक्षीणबलस्य च |
नाल्पमप्याममुद्कं हितं तद्धि त्रिदोषकृत् ||
अर्थात वह व्यक्ति जिसके दोष विषम हैं अथवा अग्नि विषम है, यानि कि वह किसी न किसी रोग से पीड़ित है या वह व्यक्ति जो रोग के बाद की कमजोरी से ग्रसित है उसे कच्चा जल अल्प मात्रा में भी सेवन नहीं करना चाहिए| क्योंकि यह जल तीनो दोषों को बढ़ा कर उसे और अधिक बीमार कर सकता है. सभी आचार्यों ने एक मत होकर निर्देशित किया है -
ॠते शरन्निदाघाब्यांपिबेत्स्वस्थोऽपि चाल्पशः |
अर्थात शरद एवं ग्रीष्म ऋतू को छोड़ कर एक स्वस्थ व्यक्ति को भी अल्प मात्रा में जल पीना चाहिए|
दुर्भाग्य से आज के समय में हम जल जैसे महत्वपूर्ण पेय आहार को अज्ञानतावश बहुत हल्के में यानि कि casually लेते हैं, जबकि इसकी महत्ता को समझते हुए हज़ारों साल पहले हमारे ऋषि मुनियों ने on the basis of Geography, (that is Desert, tropical or temperate region), on the basis of Source (यानी कि – कुएं का जल, तालाब का जल, नदी का जल, झील, झरना आदि), on the basis of season (जैसे – गर्मी का जल, सर्दी का जल, वर्षा ऋतु का जल), and on the basis of Soil – (यानी सफ़ेद मिटटी, काली मिटटी आदि) एवं अनेको अन्य प्रकार से जल के गुणों का विवेचन कर विस्तार पूर्वक सेवनीय अथवा असेवनीय आदि का निर्देश दिया. साथ ही मुख्य रूप से जल की अति मात्रा, कच्चा जल एवं बासी जल को विशेष रूप से निषेध किया है|
साथियों आपको बताना चाहूँगा जल सेवन की शास्त्रोक्त विधि का प्रयोग हम अपने क्लिनिक पर बहुत समय से करवा रहे हैं और इससे हमारे पेशेंट्स को आश्चर्य जनक लाभ मिल रहा है| अतः अंत में इन शब्दों के साथ अपनी बात की विराम देना चाहूँगा कि आप सभी यथासंभव, कम मात्रा में जल का सेवन करें, पके जल का सेवन करे एवं ताजे जल का सेवन करे. आप सभी से अनुरोध है कि अपने पूर्णतः वैज्ञानिक शास्त्रों में विश्वास रखते हुए, जल सेवन के निर्देशित अभ्यास को अपनाए और खूब स्वास्थ्य लाभ पायें, जिससे कि इस अमृत रुपी ईश्वरीय प्रसाद से शरीर का पोषण हो, विनाश नहीं|